नवीनता
Photo by Anurag Hoon |
नव संध्या लेकर आति नित नव उमंग
लेकर प्रकाश उड़ रही गगन में रवि पतंग
जो नित नव हो वो ही रहते नित इस जग में
जैसे प्रकाश, सरिता
में बैहती जल तरंग |
सरकारी
इमारत की छत पर कूदते बंदरों कों देखकर अचानक ये याद आ गया कि वे हमारे पूर्वज है| उसे
ध्यान से देखते-देखते न जाने कितनी ही तुलनाए मैंने अपने और उसके बीच कर डाली और
ये जान पाई कि विकास ने मुझे आसमान की छत से लाकर घर की छत के नीचे ला पटका है, चार
पैरों से दो पैरों पर खड़ा कर दिया और तो और वो शरीर जो बालों से ढका था अब कपड़ो से
ढक गया है| कितने प्रयासों और नए विचारों के बाद
हम आज “आधुनिक मानव” बन
पाए है| नए दिन की नवीनता के साथ एक नई सोच नया
प्रयास और नए प्रयोग ही एक नई खोज कर पाते है जो
एक नई पीड़ी और नई विचारधारा कों जन्म देते है|
मैंने
अपने आस-पास देखा तो पाया कि जिस प्रकृति का हम हिस्सा है वो स्वंय परिवर्तनशील है| नदी
का पानी, पेड़ों के पत्ते, जीव
जन्तु, सूर्य का प्रकाश कुछ भी देखें तो दिमाग में रोज़
एक नया विचार, रोज नए विकास और शरीर के अन्त होने तक
कुछ न कुछ नया होता ही रहता है| वाह! सोच कर ही लगता है जैसे मज़ा आ गया|
कैसा
हो अगर नई सुबह ही न हो, नदी का पानी अपनी जगह पर रुक जाए न
जीवन में कुछ नया हो न पुराना बस बिना स्वाद के खाने सा हम इसे गले से नीचे उतारते जा रहें हों| हमारे
नए प्रयासों के असंभावित परिणामों के रोमांच से ही जीवन में रंग भरता है| जाने
क्या होगा, कैसा होगा कब होगा इन सब चीजों के बारे
में सोचते हुए कुछ करना, थोड़ी सी आशा और थोडा सा भय और बहुत
सारा रोमांच| ऐसा नहीं लगता कि ये किसी फिल्म कि
कहानी की बात हो रही हो? पर ये हम सब की कहानी है | नवीनता
से भरी रोज नए लोगों से मिलती रोज़ नए खुआब देखती, रोज़
नए प्रयास करती हालांकि नए प्रयासों के साथ ही उनके असफल होने का डर भी होता है पर
सूख जाने के डर से फूल खिलना नहीं छोड़ते, जल
जाने के डर से पतंगा प्रकाश कों नहीं छोड़ता और न ही प्यासे मर जाने के डर से चातक
बारिश की बाट देखना नहीं छोड़ता | तो क्यों
न आज से ही कुछ नया सोचें और करे बिना डरें, क्योकि लहरों कि कुछ किये बिना ही जय जय
कार नहीं होती, कोशिश
करने वालों की कभी हार नहीं होती |
(Neeti Pandey)
No comments:
Post a Comment