मेरा सफर
कितनी लड़ाई और बाकी है,
न जाने कितने इम्तिहान और आने
है|
हर सपने को तोड़कर वक्त आगे
निकलता है,
आज भी उम्मीद वही खड़ी है, बाहें फैलाये और उसके पूरे हो जाने का स्वपन देखती है|
अपने आप में बड़बड़ाती है,
मेरी उन कई घनी रातों का सवेरा
बनकर
और कब मैं मुस्कुरा सकूंगी|
अपने को कब देखूंगी ये ख्वाब
देखे रहती हूँ,
अपने से मिलने का सपना लिए
रहती हूँ मैं|
मेरी उम्मीद भरी शाम को तेरा
इंतज़ार है|
तू कब आएगी?
मुझे ये बताने कि कायनात ने
छोड़ा नहीं है मेरा साथ
न कभी छोड़ेगे वो आसमान के तारे
मेरा हाथ|
तुमसे मिलने की बेकरारी है
सुबह
और इस सुबह का है कब से इन
आँखों को इंतज़ार|
इंतजार है उस रोज़ का जब सब
लड़ाई खत्म करके सो जाऊँगी
और ज़िन्दगी की लड़ाई जीतकर मौत को ख़ुशी से गले लगा लूंगी|
अब यही उम्मीद है ज़िन्दगी
तुझसे कि तू मिला दे मुझे मेरी आखिरी उम्मीद से|
- जगीशा (मंज़िल छात्र)
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