सपने सजने फिर शुरू हुए गोवा हमारे पहुचने के,
42 घंटे का सफर हमारा न जाने हमने वो कैसे गुज़ारा,
शायद ख़्वाब ज़ादा ही सज चुके थें।
इसलिए पता ही नही चला कब गुज़रा ये सफर हमारा
स्टेशन पहुचे जब गोवा के हम पूरा बदल गया नज़ारिया हमारा,
क्योकि सोच हमारी तो सिर्फ बनी थी
के गोवा है पूरा बीच का किनारा
सोच बदलने लगी फिर हमारी
और ऐसे शुरू हुई थी गोवा की यात्रा हमारी।
म्ंजि़ल गोवा यात्रा
सपनो को साथ लेकर चल रहे लोगो को उनकी मंजि़ल तक पहुचाने में सहायता करना, मंजि़ल संस्था का एक उददेश्य है। कुछ ऐसे विशेष समूह है जो मंजि़ल को स्तंम्भ के समान सम्हाले हुए है। इन्ही में से एक है मंजिल संस्था की कोर टीम। कोर टीम के सदस्य ही संस्था से जुड़े निर्णय लेते है, मंजिल में गणित, अग्रेंज़ी, कमप्यूटर, एंव स्पेशल विषयो (संगीत, नृत्य, नाटक, इत्यादि) को “लर्निग व शेयरिंग” के माध्यम से पढ़ाया जाता है। सीखने और सीखाने के इस नए माध्यम के कारण मंजिल में सदैव सहायको और छात्रो का तांता लगा रहता है।
मंजि़ल की एक विशेषता यह भी है कि यहां होने वाली सभी कक्षाओ के अध्यापक बिना किसी लोभ के सहयोग करतें है। वह स्वेच्छा से अपने व्यस्थ जीवन से कुछ समय मंजिल के छात्रो को देते है। वो अपना सारा ज्ञान जो उन्होने जीवन व मंजिल से प्राप्त किया है, छात्रो में बांटते है। मंजि़ल में ज्यादातर शिक्षक, छात्र एंव शिक्षक दोनो है। यहां कई शिक्षक मंजि़ल के पुराने या वर्तमान विद्ययार्थी है, इसी लिए मजि़ल में बहुत से अध्यापक अध्यापिकाए किसी एक कक्षा में पड़ाते है तो किसी और कक्षा में पढ़ते भी है। कही इनकी सीखने की प्रक्रिया अभी भी चालु है तो कही पर शेयरिंग कर, वो अपनी योग्यता को और तेज़ कर रहे है। उन सभी शिक्षको के इस सहयोग के लिए मंजिल ने अक्टूबर 2013 में सरहाना स्वरूप गोवा यात्रा की योजना बनाई जिसमें मंजिल में पिछले एक साल से पढ़ा रहे अध्यापको व प्रशिक्षको को गोवा जाने का सुअवसर मिला।
तीन महीने पहले से चल रही सफल कोशिशो के बाद 1 अक्टुबर 2013 को मंजि़ल संस्था से 13 शिक्षक व 7 कोर समुह सदस्य निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से गोवा के लिए रवाना हुए। सफर के दौरान सभी गोवा की कल्पनाओ में वहां के समुद्र तटो व गर्म रेत का आभास करते रहे।
42 घंटे के लम्बें व उत्सुक्ता पूर्ण सफर के बाद सभी गोवा पहुचे जहां “पीसफुल सोसाइटी” नामक संस्था ने सभी का स्वागत किया। थक कर चूर हो चुके सभी सदस्यों ने कुछ देर आराम किया और सुबहा की चाय के लिए सभागार ;भ्ंससद्ध में मिले। चाय के दौरान कुमार कलानंद मणी जी (पीसफुल सोसाइटी के सचिव) नें हमें पीसफुल सोसाइटी व उनके कार्यक्षेत्रो के बारे में बताया इसी बातचीत में हमें पता चला की पीसफुल सोसाइटी एक गांधी वादी संस्था है। साथ ही साथ कलानंद जी ने हमें संस्था के आसपास के कम्पाॅजि़स्ट खाद के क्षेत्रो से भी अवगत कराया।
हमने गोवा में यें पांच दिन कुछ इस तरह बिताए कि हर एक दिन गोवा के साथ साथ एक दुसरे को और अपने आप को और बेहतर से जाना। इस यात्रा की समाप्ति के बाद जब हमने शिक्षको से उनके अनुभव पुछे तो उस दौरान से पता चला की यात्रा मात्र आंनद का ही नही, विचारो में परिवर्तन का भी माध्यम बन गई थी। जय (मंजिल थियेटर शिक्षक) ने कुछ इस तरह अपना अनुभव साझा (शेयर) किया। “मेरे लिए गोवा सिर्फ सुन्दर तट व उस पर होने वाली पार्टियो का गढ़ था, पर वहां जाकर जाना कि गोवा भण्डार है अनुठी संस्कृति व इतिहास का”। सत्य है कि दुर से किसी भी चीज़ का मात्र अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वास्ताविकता उसके निकट जाने पर ही पता चलती है। आजकल समाज के कुछ विशेष राज्यों को लेकर पूर्वाग्रह (ैजमतमवजलचम) स्थापित हो गए है जिनसे परे उनको कुछ नही माना जाता परन्तु इस प्रकार के विचार परिवर्तन ये सिद्व करते है कि विचारो को परखना आवश्यक है।
यात्रा के दौरान हमने समुंद्र किनारे, कम्पाॅस्ंिटग के बारे में जाना व समझा वहा रहने वाले लोगो की जीवन शैली को समझा और यह पाया की प्रकृति एक वरदान है। पीसफुल सोसाइटी के प्रकृति प्रेम व प्रकृति सेवा को देखकर खुद और सिखने का ख्याल आता रहा।
पीसफुल सोसाइटी के गांधीवादी विचार व प्रकृति सुरक्षा की दिशा में उनके प्रयास उन्हे एक नई पहचान देते है। जो चीज़े हम मात्र विचारो के धरातल पर करतें है वो पीसफुल सोासइटी ने कर के दिखाया। उनके प्रयासो से प्रभावित होकर मंजि़ल के फिल्मकार ललित सैनी(फिल्म मेकिंग टिचर) ने पीसफुल सोसाइटी पर एक डाॅक्युमेंटरी फिल्म तैयार की जोकि पीसफुल सोसाइटी का मंजि़ल की तरफ से एक तोहफा था।
कही हमने तितलियों की सुदंरता के साथ साथ उनकी जीवन शैलियो को जाना तो कही गोवा के खुबसुरत गाॅव में रहकर वहा के स्थानिय निवासियो को। पीसफुल सोसाइटी के स्वादीष्ट खाने के साथ साथ गोवा की संस्कृति की ओर भी निकट आने का सुनहरा अवसर पाया। और गोवा संस्कृति व भुमि की जिन चीज़ो से हम अवगत नही हो पाए उनसे हमे प्रोफेसर प्रजल सखरदांडे जी ने गोवा चित्र व उसकी संस्कृति के इतिहास एंव वर्तमान से रूबरू करवाया।
इस पुरे ट्रिप के माध्यम से न सिर्फ शिक्षक एंव कोर टिम और पास आए उन्हे एक दुसरे को बेहतर समझने का अवसर मिला। साथ ही साथ एक बेहतर शिक्षक व एक बेहतर इंसान बनने (जो हमेशा से मंजि़ल का एक उद्देश्य रहा है।) के लिए और अच्छे से बढ़ावा दिया अक्टुबर 2013 की यात्रा नें।
इति शुभम्
Thank you so much all for being me a part of manzil . and i feel proud to be student of manzil. (y) Love you Didi, bhaiya n mere pyare dosto <3
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