मेरा प्यारा सा घर
घर की चार दिवारी में ही हमारी आस पलती है,
और माँ ने घर में जरुरत के हर सामान सजाये है,
घर में घड़ी, अलमारी, पंखा और केलेंडर लगायें बैंठे हैं|
घर की चौखट में वेलकम का एक कारपेट भी बिछायें बैंठे हैं,
माँ अपने बच्चे पर एकटक टक-टकी लगाए बैठी है,
बड़े होकर कुछ बड़ा
करना माँ रोज़ उससे यही कहती है|
माँ के घर का काम करना रोज़ का रूटीन है,
और माँ का बेटा चित्रकला का बहुत बड़ा शौक़ीन हैं|
हीरे, मोती, सोना, चांदी या किसी देवी की मूरत होती है माँ,
यह मैं नहीं कहता पूरा
जहाँ कहता है कि ऐसी ही होती है माँ|
Written by Niranka, Student Manzil
Painted by Farah, Student Manzil
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