मेरी कहानी मेरी जुबानी
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श्रीकांत |
नमस्कार
मेरा नाम श्रीकांत है, मैं एक मिडिल क्लास फॅमिली से हूँ और साउथ दिल्ली में रहता
हूँ | मेरी जिंदगी की शुरुआत तब होती है जब मैं 9th क्लास में था | मैं क्लास की
सबसे पिछली सीट पर बैठता था और अपने टीचर से बहुत डरता था |
मैं कभी किसी एक्टिविटीज में हिस्सा नही लेता था क्योंकि मुझे घबराहट होती थी | मैं अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती किया करता था,मेरा बहुत मन करता था की कभी मेरे लिए भी क्लास में तालियाँ बजे, मेरी भी क्लास में प्रशंसा की जाये और मुझे भी सब लोग स्कूल में जाने | मगर मुझमे अपनी बाते बताने की हिम्मत नही होती थी | एक दिन मेरे दोस्त रंजित को मंज़िल के बारे में पता चला, उसने बताया की मंज़िल एक ऐसी जगह है जहा फ्री में मैथ्स और कंप्यूटर पढ़ाया जाता है, मगर मेरे अंदर से पढ़ाई करने की इच्छा नही थी इसलिए मैंने उसे मंज़िल जाने के लिए इंकार कर दिया | लेकिन मेरे भाई शशिकांत को पढ़ने में बहुत रूचि थी इसलिए उसने रंजित से बोला... “मुझे मंजिल में एडमिशन चाहिए” | रंजित ने अपने भाई विक्की से मंज़िल का फॉर्म लाने के लिए कहा, मंज़िल में पहले से ही नियम था कि जिसके लिए फॉर्म लिया जा रहा है उसके नाम के फॉर्म से कोई दूसरा छात्र एडमिशन नही ले सकता और विक्की भाई को मेरे भाई की जगह मेरा नाम याद रहा और मेरे नाम लिखवा दिया गया, फिर मेरे भाई शशिकांत को जब यह पता चला तो उसने मुझसे बोला कि इस बार तुम एडमिशन ले लो मैंने ये सोच कर एडमिशन ले लिया कि मैं अपने भाई के लिए फॉर्म ले लूँगा और फिर मंज़िल छोड़ दूंगा |
मैं कभी किसी एक्टिविटीज में हिस्सा नही लेता था क्योंकि मुझे घबराहट होती थी | मैं अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती किया करता था,मेरा बहुत मन करता था की कभी मेरे लिए भी क्लास में तालियाँ बजे, मेरी भी क्लास में प्रशंसा की जाये और मुझे भी सब लोग स्कूल में जाने | मगर मुझमे अपनी बाते बताने की हिम्मत नही होती थी | एक दिन मेरे दोस्त रंजित को मंज़िल के बारे में पता चला, उसने बताया की मंज़िल एक ऐसी जगह है जहा फ्री में मैथ्स और कंप्यूटर पढ़ाया जाता है, मगर मेरे अंदर से पढ़ाई करने की इच्छा नही थी इसलिए मैंने उसे मंज़िल जाने के लिए इंकार कर दिया | लेकिन मेरे भाई शशिकांत को पढ़ने में बहुत रूचि थी इसलिए उसने रंजित से बोला... “मुझे मंजिल में एडमिशन चाहिए” | रंजित ने अपने भाई विक्की से मंज़िल का फॉर्म लाने के लिए कहा, मंज़िल में पहले से ही नियम था कि जिसके लिए फॉर्म लिया जा रहा है उसके नाम के फॉर्म से कोई दूसरा छात्र एडमिशन नही ले सकता और विक्की भाई को मेरे भाई की जगह मेरा नाम याद रहा और मेरे नाम लिखवा दिया गया, फिर मेरे भाई शशिकांत को जब यह पता चला तो उसने मुझसे बोला कि इस बार तुम एडमिशन ले लो मैंने ये सोच कर एडमिशन ले लिया कि मैं अपने भाई के लिए फॉर्म ले लूँगा और फिर मंज़िल छोड़ दूंगा |
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थिएटर क्लास |
तो दोस्तों यहाँ से शुरु
होती है मेरी मंज़िल की यात्रा !!
सबसे पहले मैंने मैथ्स फाउन्डेशन क्लास में एडमिशन लिया जिसके टीचर आशीष
भईया थे | क्लास के पहले दिन भईया ने सबको
अपना परिचय देने को कहा | जब मेरी बारी आई तो मै बहुत डर गया और एक मिनट तक चुप रहा
| फिर उसके बाद अटक-अटक कर मैंने अपने बारे में बताया| मगर मुझे यह बात बहुत अच्छी
लगी कि आशीष भईया ने मेरा प्रोत्साहन बढ़ाया और मैं सब कुछ अपने बारे में अच्छे से
बता पाया | धीरे धीरे मुझे मंज़िल में अच्छा लगने लगा और मज़ा आने लगा | क्योंकि
वहां बहुत अच्छे से समझाया जाता था और हिमांशु भाई ने मुझे मेरी स्कूल की मैथ्स पढ़ाई,
जिससे मेरा मैथ्स में परफॉरमेंस स्कूल में अच्छा होने लगा| मगर फिर भी मुझे अपनी
क्लास में कुछ भी बोलने में डर लगता था, लेकिन
मुझे जहाँ मौका मिलता मैं वहां मंज़िल में एडमिशन ले लेता और हर सेशन में
जाता | एक दिन मुझे मंज़िल उत्सव के बारे में पता चला मैंने उत्सव में वालंटियर
किया, मगर आप विश्वास नही करेंगे कि मैंने कितना डर डर कर उत्सव में वालंटियर किया
| मैंने उत्सव में पहली बार थिएटर प्ले देखा जिससे मैं आश्चर्यचकित रह गया | ये
प्ले मेरी जिंदगी बदलने वाला एक पल बन गया | फिर मैंने फैसला किया कि अब मैं मंज़िल
की थिएटर क्लास में एडमिशन लू |

मेरी 9th क्लास की परीक्षा हुई और सिर्फ चार बच्चे ही पास हुए, जिसमे
तीन लड़किया थी और एक लड़का था, वह लड़का मैं था जो उन चार बच्चों में पास हुआ था |
उस दिन मुझे अपने आप पर बहुत गर्व महसूस हुआ था क्योंकि 22 लड़कों में से केवल मैं
अकेला वो लड़का था जो पास हुआ था और यह कीर्तिमान मैंने सिर्फ और सिर्फ मंज़िल की
थिएटर क्लास की वजह से हासिल किया था | फिर मैं और भी ज्यादा समय थिएटर को देने
लगा|
एक दिन मंज़िल में एक शोर्ट मूवी के ऑडिशन के लिए कुछ लोग आये और पूरे
मंज़िल से लगभग 150 बच्चो ने अपना ऑडिशन दिया और यहाँ भी मैं सौभाग्यवश मैं चुना
गया जो मेरे लिए गर्व की बात थी| ये शोर्ट मूवी समाप्त करने के बाद मुझे NSD के
बारे में पता चला | वहां 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के साथ समर वोर्कशोप होने
वाली थी | मैंने भी NSD की इस वर्कशॉप में एडमिशन लेने के लिए सोचा और यह भी जनता था
कि यहाँ हजारो की संख्या में लोग हर वर्ष
आवेंदन करते है और मैंने भी आवेदन किया | यहाँ भी मेरा एडमिशन हो गया और मैं और भी ज्यादा लगन
व मेहनत से थिएटर करने लगा |
मेरी लगन और मेहनत को देखकर मुझे मंज़िल की थिएटर क्लास में (UT) यानि
भविष्य में आने वाला टीचर बना दिया गया | UT
के दौरान मुझे पता लगा कि बच्चो को थिएटर सिखाने से मैं और सीख रहा हु और फिर केवल
15 वर्ष की उम्र में मैं थिएटर टीचर बन गया था |
स्कूल के समय में मैं अब अच्छे से स्कूल के हर कार्यकर्म में हिस्सा लेने
लगा और अपने स्कूल के लिए पुरुस्कार लेकर आने लगा| और ऐसे ही मैंने
12th पास कर ली | अगर मेरी जिंदगी में थिएटर नही आया होता तो मैं 9th क्लास से आगे
नहीं बढ़ पता और आज, मैं भी अपने स्कूल के बाकी लड़को की तरह नशे में पढ़ जाता| मेरे लिए अच्छी बात यह रही कि थिएटर ने मेरी
जिंदगी बदलकर रख दी जैसे मुझे चाहिए थी |


धन्यवाद्
श्रीकांत, थिएटर टीचर, मंजिल
👍👍👍👍👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteNice journey keep it up
ReplyDeleteGreat
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