Sunday, April 19, 2020

ये मंज़र भी बदलेगा

ये मंज़र भी बदलेगा

बदला बदला सा ये मंज़र बैठे हैं सब घर के अंदर,
सोच से सबके परे ऐसा उठा हैये बवंडर,
एक धारा से शुरू करबन चला है अब समंदर,
कितनी जानें जा चुकी हैंबिछ रही लाशें निरंतर,
रोकना है गर इसे तोदाँव खेलो अब संभलकर,
साथ में मिलकर लड़ेंगेअपने अपने घर में रहकर,
वक्त है उस्ताद आखिरवक्त की कर लो कदर,
महफ़िलें होंगी ये रोशनगर रहे जिन्दा अगर,
है परीक्षा की घड़ी येहर पल लगेगा जैसे दुष्कर,
मन में गर जो ठान लो तोहर चुनौती में है अवसर,
आओ खोजें और ढूंढेंजो छिपा है अपने भीतर,
हो जुनूँ या हो हुनर कोईआओ लाएं उसको बाहर,
वो बने ताकत हमारीआये जब पूरा निखरकर,
ख्वाब को कर दें हकीकतबढ़ चलें जीवन सफर पर,
हौसलाउम्मीद रखेंहै सफलता का ये मंतर!!!

विपिन गौर द्वारा लिखित (मंज़िल छात्र)

Drawing by Rahul Theatre Class, Manzil

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