ये मंज़र भी बदलेगा
बदला बदला सा ये मंज़र, बैठे हैं सब घर के अंदर,
सोच से सबके परे ऐसा उठा है, ये बवंडर,
एक धारा से शुरू कर, बन चला है अब समंदर,
कितनी जानें जा चुकी हैं, बिछ रही लाशें निरंतर,
रोकना है गर इसे तो, दाँव खेलो अब संभलकर,
साथ में मिलकर लड़ेंगे, अपने अपने घर में रहकर,
वक्त है उस्ताद आखिर, वक्त की कर लो कदर,
महफ़िलें होंगी ये रोशन, गर रहे जिन्दा अगर,
है परीक्षा की घड़ी ये, हर पल लगेगा जैसे दुष्कर,
मन में गर जो ठान लो तो, हर चुनौती में है अवसर,
आओ खोजें और ढूंढें, जो छिपा है अपने भीतर,
हो जुनूँ या हो हुनर कोई, आओ लाएं उसको बाहर,
वो बने ताकत हमारी, आये जब पूरा निखरकर,
ख्वाब को कर दें हकीकत, बढ़ चलें जीवन सफर पर,
हौसला, उम्मीद रखें, है सफलता का ये मंतर!!!
विपिन गौर द्वारा लिखित (मंज़िल छात्र)
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