Thursday, August 22, 2013

विकलांग बच्चो के पुनर्वास में माता पिता का सहयोग

शादी के बंधन में बंधकर परिवार का जन्म होता है और उस परिवार का वंश चलता है बच्चो से। जब अचानक बच्चा जन्म लेता है, या प्रराम्भ के वर्षो में हो जाता है तो माता पिता के जीवन में हलचल सी मच जाती है।

आता है एक तुफान और कई प्रश्न जन्म लेते हैं। क्या होगा? कैसे ठीक होगा? कब हमारा सामान्य समाज स्वीकार करेगा हमारे असामान्य बच्चों को? कब हमारा बच्चा सामान्य बच्चों की तरह जी सकेगा? हमें ही ऐसा बच्चा क्यों मिला? हमारे बाद क्या होगा इसका, इत्यादी? सारा परिवार शोक की लहर में डूब जाता है, कुछ सूझता ही नही की क्या करें। परिवार यदि सयुंक्त हो तो घर के सदस्य अकसर दुखी होकर हाय बेचारा कहेंगें या धीरे-धीरे सीख जाऐगा कहेंगे। टोने टोटके या देवी देवताओ के मंदिर में जाकर मनौती मानने लग जाएंगे। और कई सयंुक्त परिवार मिलके बच्चे की देखभाल करेंगे।

  बच्चों की विकलांगता को देखते हुए लोग अधिक प्यार करतें हैं व आवश्यकता से अधिक सहानुभुति का प्रदर्शन करतें है। हमें सामान्य ही बना रहना चाहिए ना की अधिक सुरक्षा दें, ना ही अधिक उपेक्षा का भाव दर्शाये। परिवार व समाज को मंद बुद्धि बच्चों की मदद करनी चाहिए। ताकि वे अपनी कमियो के अनुरूप प्रगति करें। हमें उनकी अस्वस्था को देख कर दुखी नही होना चहिए, अपितु शांत भाव से उनकी क्षमताओं के विकास पर ध्यान लगाना चाहिए। विकलंाग बच्चे अगर सयुंक्त परिवार में जन्म लेते है तो माता- पिता के लिए उनकी देखभाल में सुविधा बनी रहती है। विशेषकर युवा पति पत्नि को मानसिक तनाव कम रहता है। बड़ो का बच्चों के प्रति स्वाभाविक प्यार उन्हे दिशा दिखाने में मदद करता है। उनका परिवारिक जीवन अस्त व्यस्त नही होता। बच्चांे के सर्वांग विकास के लिए घर का प्रत्येक सदस्य मदद करता है। बच्चांे के पालन पोषण में सभी का सहयोग बना रहता है। पर कई बार घर में परिवार के सदस्यों का कार्यभार अधिक होने के कारण सिखाने का अवसर कम मिलता है। माँ घर के कामो में उलझी रहती है। यदि परिवार में श्क्षिित माँ-बाप हैं तो डाॅक्टर से इलाज कराएंगे और अधिक समय उन्हें टेªनिंग देने व पुर्नवास करने में लगाएंगे। बच्चों को घर व बहार स्वीकृति मिलनी चाहिए। उसकी टेनिंग में सफलता धीमी गति से मिलने पर भी माँ-बाप हताश न हो, अपने को दुखी न समझ कर जैसे है वैसे ही स्वीकारें। माँ-बाप सामान्य रह कर शांतभाव से बच्चों को सिखाए व स्वंय सिखे। प्रभु ने आपके सबल कंधो को इस योग्य समझा और जिस कड़ी परिक्षा में डाला है, स्वंय निवारण भी करेंगें। माँ-बाप धैर्य व विश्वास से बच्चों को टेªनिंग दें।

  विकलंाग बच्चांे की कमियों को भुला कर उनके गुणांे पर विशेष ध्यान दें ताकि वह कभी भी हीन भावना से ग्रस्त न हो। स्वंय हमें भी कोई विपरीत भावना नहीं लानी चाहिए कि प्रभु ने हमारे साथ ही अन्याय क्यांे किया? इसे अभिशाप ना समझकर, वरदान समझकर बच्चों का पालन करना चाहिए। हम एक सामान्य वातावरण बनाएंे जिसमें उपेक्षा ना हा,े एक सुखद अनुभुति मिले जिससे सफलता अवश्य मिलेगी और मानसिक तनाव कम होगा।

  बच्चों की जि़म्मेदारी माता-पिता अथवा अध्यापक में से एक की न होकर सभी को मिल जुल कर एक दूसरे को सच जान कर बच्चो का पथ-प्रर्दशन करना चाहिए। किसी भी बात को एक बार समझाकर निश्चिन्त ना हो, बल्कि हर बात को बार-बार सिखाना चाहिए जब तक की वह सीखने के लिए तैयार ना हो। क्रोध में ना आकर शंाति से अलग बैठ कर बच्चांे को सिखाए। यदि आवश्यकता पड़े तो सज़ा अवश्य दें, किंतु सज़ा की अवधि लंबी न हो।
  जि़दगी में दुख बहुत आते है पर यह तो अपने आप में एक चुनौती है।
Indira Gulati
Co-founder, Manzil

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