बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय।
जो मन खोजा मैंने आपनो तो मुझसे बुरा न कोई।।
जो मन खोजा मैंने आपनो तो मुझसे बुरा न कोई।।
जब भी कुछ ठीक न हो,तो हम उसका कारण ढूंढते है, पर कहाँ? ज़्यादातर लोग तो बाहर ही देखते हैं, बहुत कम लोग है जो अपने अन्दर झांकते हैं अगर हम सही मायने में सीखने के इच्छुक हैं तो अपने अन्दर ही देखना चाहिए रूमी कहतें हैं, हमारे जीवन में दो ही चीज़े हैं करने के लिए - चित्र बनाना और अपनी पेंसिल छीलना। कबीर का यह दोहा हमारा ध्यान अपनी पेंसिल छीलने की ओर ले जाता है।
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