कितना अच्छा हो की पढ़ाई के कुछ नए तरीके पता चलें जिनसे हम उन्ही किताबी चीजों को करके देखके उन्हें समझ सकें। पूरी दुनिया क्लास रूम बन जाये और हम सब विद्यार्थी। वाह........ सोच के ही कितना अच्छा लग रहा है तो ये हो जाये तो मज़ा ही आ जाये। मंज़िल के कुछ ऐसे ही तरीके हैं लोगों को पढ़ाने और सिखाने के, उन्ही तरीको को जानने का तरीका है ये बियॉन्ड मंज़िल का छोटा सा कोना।
ये कोना ठीक वैसा ही है जैसा सीप, है छोटा पर बहुत बहुमूल्य चीज़ छुपाये है अपने अंदर और बस इसे खोलने भर की देर है और खबरों का मोती आपके सामने, बस। तो देखें आज के सीप से कौन सी खबर निकलती है।
जैसा की हम बता चुके है कि मज़िल हमेशा अपनी क्लास रूम से बहार निकल कर कुछ अलग तरीके तलाशता है। कुछ सीखने और समझने की इसी कोशिश ने हमे पहुचाया संवाद में। संवाद एक मजमा है जहाँ एक विषय को लेकर उसके सारे पहलुओं पे बात की जाती है, और जैसा कि नाम से ही पता चलता है की बातचीत बहुत ही शांत और खुली होती है ताकि सभी अपनें विचारों को रख सकें बिना ये सोचे की लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी। शायद मुझसे कोई और कहता तो मैं नहीं मानती पर संवाद को खुद अनुभव करने के बाद मैं ये कह सकती हूँ की सभी उम्र के लोगों को एक जगह लाने में और उनके बीच अंतर घटने मे संवाद सफल रहा।
संवाद 2014 का विषय शिक्षा एवं नागरिकता रखा गया था। जितना बड़ा ये विषय है उतना ही उलझा हुआ भी है। इस संवाद में शिक्षा के क्षेत्र में ज़रूरी बदलावों के बारे में लोगो ने अपनी राय दी। संभवतः, बड़ी-बड़ी राजनीतिक सभाहों में इतने अच्छे बदलाव या सुधार के तरीके सामने नहीं आते होंगे जितने वहाँ आये। आम लोगों ने ही पहेलिया बताई और उन्हें सुलझाया भी। सबसे अच्छी बात ये थी कि वहाँ आए लोगो में कुछ बच्चे थे और कुछ उन बच्चो के शिक्षक तो हमें दोनों तरफ के विचारों को सुनने और समझने का मौका मिला। आज के युवा समाज को अपने लिए जगह और समय दोनों चाहिए, वो उस तरीके से नहीं सोचते जैसे उनके माता-पिता सोचते या शिक्षक सोचते हैं और यही सबसे बड़ी समस्या बनके सामने आया। मंज़िल से जो लोग वहाँ गए थे उन्होंने भी अपनी बातों को सबके सामने रखा और साथ ही साथ ये भी समझा कि जो बदलाव हम चाहते है उनमे हम कैसे हिस्सेदार बन सकते हैं।
संवाद के दूसरे दिन के शुरुआती सत्र मे हमने तीन फिल्मे देखी। उन फिल्मों नें बेशक सबको ये सोचने पर मजबूर कर दिया होगा की "हाँ ये तो मेरे साथ भी हुआ था" | हालाँकि ये नहीं कहाँ गया कि क्या ग़लत है और क्या सही पर उसे देख कर साफ़ साफ़ समझ आ गया कि किस चीज़ मे बदलाव की ज़रूरत है। एक फिल्म मे ये दिखाया गया कि एक शिक्षक एक बच्चे को क्रमानुसार खड़ा कर रहा था, पर उसे नाजाने क्या गलत लगता है कि वो उस बच्चे को निकाल कर एक बच्चे के पीछे तो कभी दूसरे के आगे खड़ा करता है, जब शिक्षक को लगता है की क्रमानुसार कहीं भी फिट नहीं हो रहा तो वो उस बच्चे को क्रम से ही निकाल देता है। क्या हमने उस बच्चे के लिए ऐसी जगह बनाई है जहाँ वो खुद को फिट कर सके या उसे हमेंशा ऐसे ही क्रम से निकाल कर औरों से अलग कर दिया जायेगा। हम जो असमानता का बीज बो रहे हैं वो उसे किस तरह प्रभावित करेगा। और भी नजाने कितने सवाल थे दिमाग मे जो आपस में कबड्डी खेल रहे थे।
साथ ही बच्चों और माता-पिता के रिश्तों को लेकर भी काफी चर्चा हुई कि किस तरह माता-पिता अपने बच्चों को ये तय करने की आज़ादी दें कि वो क्या करना चाहते हैं और जो वो करना चाहते हैं उसमे किस तरह से उनको सहायता करें। हाँ, ये भी हैं कि बहुत ही भावनात्मक रिश्ता होने की वजाह से उसे इस तरीके से सुलझाना उतना आसान नहीं है, पर उसे आपस मे बातचीत के माध्यम से समझने की कोशिश
की जा सकती है। मंज़िल के माध्यम से बीस लोगों का समूह वहाँ गया और अपने बहुत से सवालों का जवाब पाया।
इसी तरह मंज़िल ने कई और कोशिशें कीं जैसे एक वर्कशॉप शहरी खेती के नाम जिसमे बच्चों ने घर मे खाली जगह को कैसे खेती के लिए इस्तेमाल करना है ये जाना, साथ ही साथ जैविक खेती को भी अच्छे से समझा। आज के समय में जहाँ दुनियाँ सिर्फ अपनी सुविधाओ के लिए भाग रही है वहाँ प्रकृति के प्रति लोगो को जागरूक करके मंज़िल एक बहुत बड़ा कदम उठा रहा है। साथ ही मंज़िल भारत की कलाओं को भी सहेजने का काम कर रहा है, हाल ही में मंज़िल ने अमैरिकन सैंटर के साथ मिलकर एक वर्कशॉप करवाई जहाँ मंज़िल
मिस्टिकस और अमरीका से आये कुछ कलाकारों ने अपने हुनर को सांझा किया।
इसी तरह मंज़िल ने बहुत से प्रयास किये हैं मंज़िल के लोगों को कक्षा से बहार की दुनिया के नज़दीक ले जाने का और उन्हें और बेहतर बनाने का। आगे भी ये कोशिश यु ही चलेगी। खेर आगे के लिए देखेंगे की सीप में से कौन सी ख़बर का मोंती निकलता है।
Neeti Pandey (Vocalist and Writer, Manzil Mystics)
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