Friday, August 14, 2020

मंज़िल स्कूल: लर्निंग की कोई सीमा नहीं

मंज़िल स्कूल: लर्निंग की कोई सीमा नहीं 


"बच्चे देश का भविष्य हैं, उनमे अच्छी भावनाओं का निर्माण हो, इसका ध्यान रखते हुए, बहुत ही प्यार व स्नेह से, यहाँ पर काम करने वाले साथियों का चुनाव करके, मैंने और गीता चोपड़ा जी ने मिलकर मंजिल स्कूल की शुरुआत वर्ष 1996 में कोटला - सेवा नगर में की। इसमें इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि ये सभी साथी टीचर्स, स्कूल के आस–पास रहने वाली ही हों ताकि आने जाने में समय बर्बाद न हो"- इंदिरा गुलाटी (मंज़िल संस्थापक)

मंजिल कोटला स्कूल एक प्री-प्राइमरी स्कूल है जिसमे 3 से 5 वर्ष के बच्चे पढ़ते हैं। इसी स्कूल से खान मार्किट वाले मंज़िल की शुरुआत हुई थी। हमें बहुत ही गर्व महसूस हो रहा है कि इन तीन-चार महीनों में जब स्कूल बंद था, तब हमारे कोटला स्कूल के टीचर्स ने बहुत ही मेहनत और लगन के साथ अपनी लर्निंग को जारी रखा और इन मुश्किल दिनों में भी अपनी सकारात्मक सोच के साथ बहुत कुछ सीखा जो साफ-साफ उनके काम करने के ढंग में भी नजर आता है। अभी मंज़िल प्री-प्राइमरी स्कूल में 4 टीचर्स हैं जिनके नाम हैं, हेमलता, मनीता, उमा और अंजलि। 

तो चलिए सुनते हैं मंज़िल स्कूल के टीचर्स का ये सफर उनकी ही ज़ुबानी।

मनीता, उमा, अंजलि, हेमलता 
हेमलता जी:
लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ऐसा लगा कि ज़िंदगी रुक गई हो और निराशा ने घेर लिया। लेकिन धीरे -धीरे जब कोटला स्कूल की सभी टीचर्स, इंदिरा मैडम, नेहा भाभी और तुलसी के साथ गूगल मीट पर मीटिंग्स की शुरुआत हुई तो निराशा और डर की भावना थोड़ी -थोड़ी कम होती चली गई। मीटिंग में काम के साथ-साथ पर्सनल शेयरिंग भी होती है, जहाँ हमें अपनी सारी बातों को कहने का मौका मिलता है और ये अकेलेपन को भी दूर करने में मदद करती है.

इस मुसीबत के समय में, हमने बच्चों के पेरेंट्स से भी बात की और उनको कोरोना वायरस से बचाव के उपाय भी बताये। इस तरह पेरेंट्स हमसे इतने अच्छे से जुड़े कि उन्होंने हमारे साथ राशन न होने की समस्या का जिक्र किया जिसमे मंज़िल की फ़ूड डिस्ट्रीब्यूशन टीम ने उनको राशन देने में मदद की। 

इसके अलावा, ड्रामेबाज़ (मंज़िल) की 10 दिन की स्टोरी-टैलिंग वर्कशॉप में हम सब टीचर्स ने मिलकर इमेजिनेशन वाली कहानियां बनाना सीखा, जिससे अब हम किसी भी चीज़ पर कहानी बना सकते हैं। अब मैं अपनी कहानी में वौइस् मॉडुलेशन, बॉडी लैंग्वेज और एक्सप्रेशंस को डालकर उसे और बेहतर तरीके से सुना सकती हूँ।

ऐसे समय में हमें ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा कि स्कूल बंद हैं तो हम काम नहीं कर रहे हैं या हमारा टाइम बर्बाद हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि हम बच्चों से जुड़े हुए हैं और उन्हें एक अच्छी शिक्षा देने के लिए हम एक टीचर ट्रेनिंग कर रहे हैं। जब हम वापस बच्चों को पढ़ाने लगेंगे तो हम पैनिक नहीं होंगे। हम और भी विश्वास के साथ उनको बेहतर शिक्षा देने के लिए तैयार होंगे।

मनीता : पहले हम कोई भी काम करते थे, पहले कॉपी में लिखते, फिर फोटो क्लिक करके व्हाट्सप्प ग्रुप में भेजते थे। पर अब हमारा यह काम बहुत आसान हो गया है। अब हम ई-मेल, गूगल शीट, गूगल डॉक्स और गूगल ड्राइव की मदद से काम कर रहे हैं। इन सभी टूल्स को इस्तेमाल करने में पहले बहुत दिक्कत आती थी और लगता था कि इस पर मैं काम नही कर पाऊँगी, पर तुलसी, नेहा भाभी और गुलाटी मैडम हमारा हौसला बढाती रहती, तो फिर पाजिटिविटी आ जाती. तुलसी फ़ोन में काम करने में मदद करती है और इंग्लिश भी सिखाती हैं। हम सब फ़ोन की मदद से एक साथ काम करते हैं तो मुझे कभी महसूस नहीं होता कि हम दूर हैं। इन दिनों में मैने अपनी ग्रोथ को देखा है।

ऊमा जी: पहले मैं खान मार्केट वाले मंज़िल का नाम सुनते ही बोलती थी कि हमारा मंज़िल तो कोटला का स्कूल है, लेकिन अब मेरी सोच में काफी बदलाव आया। मंज़िल के सभी टीचर्स के साथ मीटिंग करके, हम खान मार्किट वाली मंज़िल के करीब आ गए हैं
 बहुत अच्छा भी लगता है जब वहाँ मंज़िल के बच्चे भी अब हमें जानते है, जो पहले नहीं था। ऑनलाइन मीटिंग और क्लासेस से दोनों मंज़िल के बीच की दूरियां हटी है। सबसे पॉजिटिव बदलाव मेरे जीवन में ये भी आया कि मैं हमेशा बोलने से बचा करती थी, लेकिन जब मैने 25 लोगों के साथ टीचर्स मीटिंग में अपनी बातों को रखा, मेरा आत्मविश्वास और ज्यादा बढ़ गया। अब अगर कोई मुझे कुछ बोलने को कहता है तो मैं बचती नहीं हूँ। इन दिनों हम सब टीचर्स ने साथ मिलकर गूगल टूल्स सीखा जो मेरे लिए बहुत ही कठिन था, लेकिन मेरे साथी टीचर्स जैसे कि मनीता ने मुझे बार - बार पूछने पर समझाया, जिससे हम सब ने एक दूसरे की मदद कर, टीम में प्यार और एकता का अनुभव किया।

आंटी जी, हेमलता और अंजलि जी 
अंजलि जी
: मै मंज़िल स्कूल से पिछ्ले 10 साल से जुड़ी हुई हूँ और यहाँ एक बहुत ही अच्छा टाइम बिताया है। मैं स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के अलावा, खुद घर पर सिलाई का काम भी करती हूँ जो लड़कियाँ सिलाई सीखना चाहती हैं, मैं उनको पूरी मेहनत के साथ सिलाई भी सिखाती हूँ। मंज़िल से काफी लड़कियाँ सिलाई सीख कर गई हैं। बच्चों को कैसे पढ़ाया जाता है,यह मैंने मंज़िल स्कूल से ही सीखा है और अभी भी सीख रही हूँ। आज तक मेरा सफर मंज़िल स्कूल में इंदिरा गुलाटी मैडम के साथ बेहद खूबसूरत रहा है वो मुझे और मेरे बच्चों को दिल से समझती है और माँ की तरह मोटिवेशन देती है। 

गुलाटी आंटी जी: 24 वर्ष कोटला में मंज़िल स्कूल को चलाने के बाद अचानक COVID 19 की वजह से स्थिति बदल गयी। ऐसे समय में कैसे बच्चो और टीचर्स को सपोर्ट किया जाए इसकी चिंता हुई
 लेकिन फिर इसे एक असवर समझ कर मैंने पहले मंजिल की क्लास और सेशन ज्वाइन की ताकि सभी टीचर्स मोटीवेट हो सके कि जब मैं 85 साल होने के बावजूद सीख सकती हूँ तो बाकि टीचर्स क्यों नहीं। 
 अतः सभी टीचर्स ने क्लासेज ज्वाइन की और साथ ही साथ टीचर लर्निंग मटेरियल भी बनाया और उसे गूगल डॉक्स और ईमेल के द्वारा शेयर किया जो पहले वो कॉपी में लिख के फोटो खीच कर भेजा करते थे। इससे मुझे बहुत ख़ुशी महसूस हुई क्योंकि technology उन सब के लिए एक टेढ़ी खीर थी। 

अंत में हम मंजिल स्कूल के सभी टीचर्स के इस बेहतरीन परिवर्तन की सराहना करते है और गुलाटी आंटी जी के ही शब्दों में कहते है कि किसी भी स्थिति का डट कर मुकाबला करे, लेकिन डर कर नहीं, Careful हो कर।

लिखित तुलसी (मंज़िल - कोर टीम सदस्य, न्यूज़ लेटर एडिटर) द्वारा
सम्पादित विपिन गौर (वालंटियर एवं newsletter टीम सदस्य) द्वारा



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