Friday, August 14, 2020

समय का बदलाव: A Poem By A Manzillion

 समय का बदलाव 

समय बदला है और बदले थोड़े हम भी
खुशी आई है पर साथ थोड़ा ग़म भी
मौसम के इस बदले रुख ने जीना सिखा ही दिया
प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ करने का फल दिखा ही दिया
पर मेरे दोस्त तुम घबराना नहीं
घर पे रहो ज़रा, अभी बाहर जाना नहीं।
 
मुझे खुशी है कि मैं दुख में भी मुस्कुराना सीख गया
ग़म-ए-शायरी में भी खुशी के गीत गाना सीख गया
मेरा मन बाहर भागने को मचलता रहता था
पर इस लॉकडाउन में परिवार में समय बिताना सीख गया
अपनों को हँसाना सीख गया।
 
ए कोरोना तुझसे एक बात कहनी है बुरा ना मानना
क्योंकि तेरे लिए ज़रूरी है ये जानना
तू ने बहुतों को पीड़ा दी, कई को सच दिखा दिए
लेकिन असल में तूने कई दोगले रिवाजों पर सवाल उठा दिए
वो जो घूँघट का पर्दा ज़रूरी कहते थे
आज उनके मुंह पर भी मास्क के पर्दे चढ़ा दिए
कि वो दरवाज़ें जहां हर मुश्किल का हल था
असल मुश्किल में उन सीढ़ियों पर भी ताले लगा दिए।
 
कुछ विश्वास जीते तो तोड़े कुछ अंधविश्वास भी
पता चला वो मंदिर मस्जिद में ही नहीं
बल्कि वो तो है मेरे आस पास भी।।

Written by Vishal Kashyap, 21, Theater Student

No comments:

Post a Comment