Thursday, December 31, 2020

एक अनूठा उत्सव ख़ुशियों के दान का


हमारा देश भारत, पूरे संसार में अपने रंग बिरंगे अनोखे त्योहारों और उत्सवों के लिए जाना जाता है। यहाँ साल भर कोई ना कोई उत्सव, देश के किसी ना किसी कोने में मनाया जाता रहता है, पर इन सबके बीच क्या आपने कभी किसी ऐसे उत्सव के बारे में सुना है जो किसी धर्म, प्रदेश, जाति या राष्ट्र से बढ़कर, पूरी मानवजाति द्वारा मनाया जाता हो? और जिसका किसी भी तरह के भेदभाव से उठकर, बस एक ही मकसद हो कि इस दुनिया को कैसे खुशहाल और बेहतर बनाया जाए।

जी हाँ, इसी साल गाँधी जयंती से ठीक पहले, हम सबके प्यारे रवि भैया और श्रीधर भैया (जो कि मंज़िल के एक ख़ास सपोर्टर हैं और यहाँ से निकले कई Entrepreneurs को mentor भी करते हैं) ने मंज़िल की सीखने सीखाने की परंपरा में एक और खूबसूरत कड़ी को जोड़ते हुए, दान उत्सव से हम सबका परिचय करवाया और हम सभी को प्रेरित किया कि हम सब इस अनूठे उत्सव में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें जो कि प्रतिवर्ष 2 से 8 अक्तूबर तक मनाया जाता है। मंज़िल में इस उत्सव की औपचारिक शुरुआत इस साल दीप कालरा भैया ने की जो कि ऑनलाइन ट्रेवल कंपनी ‘मेक माय ट्रिप (makemytrip) ‘के संस्थापक और निदेशक हैं।

तो इस उत्सव में, हम क्या दान कर सकते हैं? इसका जवाब, बड़ा सीधा सा है कि ऐसी कोई भी चीज़ जो आपके पास है और जिसके ज़रिये आप किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं या किसी की ज़िन्दगी बेहतर बना सकते हैं जैसे कि आपका समय, हुनर, सोच, काबिलियत, मदद का जज़्बा या फिर धन।.मंज़िल के छात्रों में, इसको लेकर खासा उत्साह दिखा। तो आईये, अब हम सुनते हैं उनकी ही ज़ुबानी, उनके दान उत्सव में भागीदारी की कहानी.

1) अंजू वर्मा, 19, थिएटर, इंग्लिश छात्र

अपनी इंग्लिश क्लास के होमवर्क के रूप में, मुझे यह लिखना था कि पेन कार्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे किया जाता है। थोड़ा व्यस्त होने के बावज़ूद भी, मैंने होमवर्क करके, अपने इंग्लिश ग्रुप में जमा कर दिया. शाम को मेरी क्लास से ठीक पहले, मुझे अपने ग्रुप में, मेरे एक सहपाठी (जील) से एक मैसेज मिला, "thank you, just registered for pan card (शुक्रिया, मैंने अभी अभी यह लेख पढ़कर पैन कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन कर लिया)”. मैं इस बात से बेहद हैरान और खुश भी थी कि मेरे द्वारा जल्दबाज़ी में किया गया होमवर्क कैसे किसी के लिए इतना लाभदायक रहा। मुझे इस घटना से यह सीख मिली कि काम चाहे कुछ भी हो, कितना भी छोटा क्यों ना हो, उसे करने में शर्माएं नहीं और ना ही उसे टालें। कभी कभी छोटी छोटी मदद भी बड़ी बन जाती है और यही तो दान उत्सव का मतलब है, है ना? 

2) राहुल कुमार, 20, इंग्लिश छात्र

दान उत्सव के दौरान, मैंने एक छात्र को पढ़ाई में मदद की, पशु पक्षियों को खाना खिलाया व पानी पिलाया। एक दिन बैंक में, ना सिर्फ मैंने कुछ लोगों को पैसे निकालने में मदद की, बल्कि एक ज़रूरतमंद के लिए 2 घंटे तक लाइन में भी खड़ा हुआ। इसके अलावा मैंने कुछ लोगों को उनके घर का सामान शिफ्ट करने में भी मदद की. इस दौरान मुझे इस बात का एहसास हुआ कि किसी भी तरह की छोटी या बड़ी निस्वार्थ भाव से की गई सेवा, वाकई में किसी आशीर्वाद से कम नहीं।

3) तरन्नुम, 21, म्यूजिक छात्र

यह कतई ज़रूरी नहीं कि दान में कोई बड़ी चीज़ ही दी जाए, छोटी चीज़ देते वक्त भी अगर नियत साफ़ हो, तो वो एक दान, सौ नेकियों के बराबर होता है। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, एक मुसाफिर मेरे दर से टकराया, हालत कुछ ठीक नहीं थी, ज़बान लड़खड़ा रही थी। फिर भी हिम्मत बाँध कर उन्होंने कह दिया, “दो रोटी मिल सकती है क्या यहाँ?” मेरी माँ हमेशा कहती है कि दरवाज़े से कोई भूखा नहीं जाना चाहिए, इसलिए मैं दौड़ कर अन्दर गई और उनके लिए खाना और पानी ले आई। खाना लेते वक्त उन्होंने कहा, “शुक्रिया बेटा, कई दिनों से चल रहा हूँ और दो दिन से भूखा भी था, खुश रहो, भगवान तुम्हें लंबी उम्र दे”। ये लफ्ज़ बहुत छोटे से हैं, मगर जब ये किसी की मदद करने पर सुनाई देते हैं, तो इनकी कीमत बढ़ जाती है।

4) ममता शाह, 30, क्राफ्टकारी टीम मेम्बर

Workshop poster
मंज़िल में एक वुमन एंपावरमेंट ग्रुप है क्राफ्टकारी, जिसकी मैं भी एक सदस्य हूँ। इस बार के दान उत्सव में, मैंने लोगों को खेल-खेल में पेपर के द्वारा आर्ट बनाना सिखाया। आर्ट एंड क्राफ्ट के पेपर मार्केट में बहुत ही सस्ते मिलते हैं और इनसे बड़े खूबसूरत डिजाइन बनाए जा सकते हैं जैसे इयररिंग्स, कार्ड, बुकमार्क, फ़ोटो फ्रेम इत्यादि। जब मैंने दान उत्सव के लिए पेपर से एक उल्लू का डिज़ाइन बनाया, तो मुझे बहुत मज़ा आया और साथ ही साथ मैंने यह भी सीखा कि किसी की मदद पैसे के अलावा और तरीकों से भी की जा सकती है, ख़ासतौर पर अपने हुनर के ज़रिये।

तो दोस्तों, ये थी मंज़िलियन्स की दान उत्सव में भागीदारी की कहानियाँ। जैसा कि आपने गौर किया होगा कि दान उत्सव में मदद से बढ़कर, मदद के जज़्बे की अहमियत होती है फिर चाहे वह छोटी हो या बड़ी, आर्थिक हो या किसी को अपना समय देकर, या फिर अपनी किसी कला के ज़रिये। मंज़िल में, हमारी कोशिश हमेशा यह रहती है कि इस तरह की किसी भी पहल के ज़रिये, छात्र मानवीय मूल्यों को सीख पाएं और उन्हें अपने जीवन में सदैव के लिए उतारने की कोशिश करें।

विपिन गौड़ (न्यूज़लैटर टीम मेम्बर) द्वारा लिखित

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