Thursday, December 31, 2020

चकमक मैगज़ीन: बच्चों का हुनर

चकमक एकलव्य संस्था द्वारा प्रकाशित बच्चों की एक मासिक हिन्दी पत्रिका है। एकलव्य एक ग़ैर-लाभकारी, ग़ैर-सरकारी संगठन है, जो मध्य प्रदेश में स्थित शिक्षा संसाधन केंद्रों के एक नेटवर्क के माध्यम से कार्य करता है।
यूँ तो चकमक को बड़े भी चाव से पढ़ते हैं पर मुख्य तौर पर यह 11-14 साल के इर्द-गिर्द के पाठकों को ध्यान में रखकर बुनी जाती है। चकमक बच्चों को एक समझदार इंसान के रूप में देखती है।

बच्चों की रचनात्मकता व सृजनात्मकता को चकमक ने शुरुआत से ही मंच दिया। बच्चों की कल्पना को उड़ान देने वाले यह पन्ने ‘मेरा पन्ना’ नामक एक नियमित स्तम्भ बन गए। आज भी यह कॉलम बदस्तूर जारी है। सम्भवत: चकमक हिन्दी बाल साहित्य की पहली ऐसी पत्रिका थी, जिसने बच्चों की रचनाओं को बिना काट छाँट के उनके मूल रूप व भाषा में जस का तस पेश किया। इसके अतिरिक्त बच्चों की सृजनात्मकता को मंच देने के लिए समय-समय पर कई कॉलम चलाए गए मसलन ‘बोली रंगोली’, ‘अगर-मगर’। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पिछले 2-3 वर्षों से "क्यों-क्यों" नाम का एक कॉलम शुरू किया गया है। इस कॉलम में हर माह बच्चों से एक सवाल पूछा जाता है जिसका जवाब उन्हें सही-गलत की परवाह किए बिना अपने हिसाब से देना होता है।

Kyu-Kyu Column
चकमक मैगज़ीन की गतिविधियों में, मंज़िल के बच्चे बहुत ही दिलचस्पी से भाग लेते है जिसमे उनकी विवेकशीलता के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। बच्चों के अनुभवों और उनकी कल्पनाओं के मेल से बनी यह रचनाएँ बहुत ही रोचक होती हैं। मंज़िल के बच्चों की भी कई रचनाएँ चकमक में प्रकाशित हुई हैं। चकमक मैगज़ीन मंज़िल के साथ पिछले 3 सालों से जुड़ी है। इसके "क्यों-क्यों" कॉलम में पूछे गए सवालों से बच्चो की सोच का विकास हो रहा है और वो दिए गए सवालों पर अच्छे से रिफ्लेक्ट कर पाते हैं। उनके सवाल कुछ इस प्रकार होते हैं, जैसे “हम सभी ने अपनी जिन्दगी में कभी ना कभी झूठ बोला है। ऐसा कौन-सा झूठ है जिस पर तुम्हें कभी अफसोस नहीं हुआ और क्यों?”, “पिछले कुछ महीनों से स्कूल बन्द है। इस दौरान स्कूल की कौन-सी बात तुम सबसे ज़्यादा मिस करते हो और कौन-सी बात बिलकुल भी मिस नहीं करते?”, “सोचो कि तुम बड़े बन गए और तुम्हारे बड़े, बच्चे बन गए तो तुम उनसे क्या कहना चाहोगे, और क्यों?” इत्यादि।

Written by Manisha, 11
मंज़िल के बच्चों की रचनात्मकता इस मैगज़ीन में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। बच्चों की रचनाएँ जब भी मैगज़ीन में छपती हैं तो वो खुश होते हैं। चकमक मैगज़ीन एक कोशिश है बच्चो की प्रतिभा को उजागर करने की। मंज़िल के टीचर्स भी बच्चों को बहुत प्रोत्साहित करते हैं। लॉकडाउन के दौरान जब लगभग सब कुछ बन्द था हमें लगा कि शायद चकमक मैगज़ीन से अब सवाल ना आए, लेकिन चकमक मैगज़ीन ने परिस्थिति की परवाह न करते हुए अपना काम जारी रखा और उस समय में भी लिखने के लिए तरह-तरह की गतिविधियाँ देकर बच्चों को बिजी रखने में कामयाब रहे। 
An answered published in Chakmak

जब हमने बच्चों से सवाल किया कि अगर चकमक मैगज़ीन उनके जीवन में नहीं होती तो क्या होता या कैसे चकमक मैगज़ीन उनकी लाइफ में मदद करती है तो बच्चों ने हमें कुछ इस तरह के जवाब दिए: 

चैतन्य, उम्र - 12 साल: “चकमक मैगज़ीन के द्वारा मुझे समझ आया कि डेडलाइन में काम करना कितना ज़रूरी है क्योंकि चकमक में आर्टिकल लिखने की हमेशा हमें डेडलाइन मिलती है। डेडलाइन की इम्पोर्टेंस समझ आई है और अगर घर में और स्कूल में भी डेडलाइन मिले तो हम हर काम अच्छे से और टाइम पर कर सकते हैं।” 

मनीषा, उम्र - 11 साल: “चकमक मैगज़ीन हमें एक्टिव बनाती है और बहुत मज़ा भी आता है जब भी हम चकमक के लिए अपनी रचनाएँ लिखते हैं।”

दिव्या, उम्र - 10 साल: “चकमक मैगज़ीन में लिखने से हमारी पढ़ाई में भी हेल्प हुई है जिससे अब हम पढ़ाई में फोकस अच्छे से कर पाते हैं।”

आदित्य, उम्र – 11 साल: "चकमक मैगज़ीन में लिखना एक रिवॉर्ड की तरह है अगर चकमक मैगज़ीन नहीं होती तो किसी को पता नहीं चलता कि हम ड्राइंग भी कर सकते हैं और हम सिर्फ घर में ही ड्राइंग बनाते रहते।"

तन्वी, उम्र - 8 साल: “चकमक मैगज़ीन नहीं होती तो हमें पता नहीं चलता कि ‘क्यों-क्यों’ कॉलम में पूछे जाने वाले सवाल भी होते हैं और उनके जवाब देने का मौका नहीं मिल पाता।”

अनिकेत, उम्र – 12 साल: “हमारा दिमाग तेज़ चलता है चकमक में दिए गए सवालों को समझने के बाद और थिंकिंग पॉवर बढ़ जाती है।”

बच्चों के इन जवाबों ने हमें और भी प्रोत्साहित किया है कि हम चकमक मैगज़ीन के साथ जुड़े रहें और इस आर्टिकल के ज़रिए हम चकमक मैगज़ीन के काम की सराहना करते हैं और अपना आभार व्यक्त करते हैं।

तुलसी (न्यूज़लैटर एडीटर) द्वारा लिखित 

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