टीचर
टीचर होती एक परी,
बगिया जैसे हरी भरी,
बगिया जैसे हरी भरी,
दोस्त हमारी है, सच्ची,
लगती है सबसे, अच्छी,
बहुत प्यार से, हमें सिखाती,
परे क़िताबों के, ले जाती,
आशा की किरणें है, जगाती,
साहस की नई डगर, दिखाती,
टीचर ऐसे, हमें पढ़ाते,
सबक जिंदगी का समझाते,
दिखलाती मुझको जो दर्पण,
श्रद्धा सुमन उस गुरु को अर्पण।
लगती है सबसे, अच्छी,
बहुत प्यार से, हमें सिखाती,
परे क़िताबों के, ले जाती,
आशा की किरणें है, जगाती,
साहस की नई डगर, दिखाती,
टीचर ऐसे, हमें पढ़ाते,
सबक जिंदगी का समझाते,
दिखलाती मुझको जो दर्पण,
श्रद्धा सुमन उस गुरु को अर्पण।
अनेक भाषा
बहुत मुश्किल है, समझना और समझाना,
इंसान मुझे समझ नहीं आते, और मै उन्हें,
जिन्हे मै समझती हूं और जो मुझे ,
दुख हमारा बस इतना है कि विलुप्त है,
हमारी भाषा , कहीं अनंत में, कब से ,
होगा ज्ञान इंसानों को, लाखों बोलियों का,
भाषाओं का, परन्तु अबोध हैं वो अभी तक,
भाषा से, उन बेजुबानों की, हां उन्हीं की ।
करनी है बात उनसे, अब मौखिक भाषा में ,
कब तक करेंगे बात, सांकेतिक भाषा में।
सुनने हैं मुझे, उन सबके राज, भाव और नाम,
दुख, दर्द, डर, और खुशी के पल,
उनकी आवाज में, साथ में, गुनगुनाते हुए ,
हंसते हुए, रोते हुए, गाते हुए ,शब्दों में ।
इंसान मुझे समझ नहीं आते, और मै उन्हें,
जिन्हे मै समझती हूं और जो मुझे ,
दुख हमारा बस इतना है कि विलुप्त है,
हमारी भाषा , कहीं अनंत में, कब से ,
होगा ज्ञान इंसानों को, लाखों बोलियों का,
भाषाओं का, परन्तु अबोध हैं वो अभी तक,
भाषा से, उन बेजुबानों की, हां उन्हीं की ।
करनी है बात उनसे, अब मौखिक भाषा में ,
कब तक करेंगे बात, सांकेतिक भाषा में।
सुनने हैं मुझे, उन सबके राज, भाव और नाम,
दुख, दर्द, डर, और खुशी के पल,
उनकी आवाज में, साथ में, गुनगुनाते हुए ,
हंसते हुए, रोते हुए, गाते हुए ,शब्दों में ।
कहते हैं लोग, वो जानते हैं प्यार की भाषा,
भाव की भाषा और भाषा संकेतो की,
हमे नहीं करनी अब, सब बात आपस में,
चाहिए हमको भी, मौखिक हमारी भाषा,
इनमें कर ले इंसान, वार्तालाप आपस में,
मुझको समझा दे, मौखिक भाषा कोई,
पेड़ों की, मछलियों की, पहाड़ों की ,
जानवरों की, हवाओं की, बादलों की,
सबकी भाषा, सिवाए इंसानों के।
मुझे सीखनी है भाषा, प्रकृति की,
वो भी मौखिक, न कि सांकेतिक।
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