Monday, September 1, 2014

मुुद्दा ज़रा गंभीर है।


मुुद्दा ज़रा गंभीर है।


Photo by Anurag Hoon (Senior Coordinator, Manzil)



आज़ादी, आज से पहले ये मुद्दा मुझे उतना उलझा हुआ नही लगा था, पर आज जब मंजि़ल ने ये शब्द मुझे दिया और कहा कि इस पर एक अर्टिकल लिखो और मैने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाए तब पता चला कि ये शब्द जो सिर्फ तीन अक्षरों से बना है। सच में कितना बड़ा है। हम सब के लिए बहुत आसान है यह कहना की हम आज़ाद है, पर एक बार फिर सवाल करें खुद से कि क्या हम सच में आज़ाद है?
और फिर इसी के साथ ये सवाल भी जन्म लेता है कि मेरे लिए आज़ादी का मतलब क्या है? हम सभी अपनी आज़ादी का मतलब खुद तय करते है। साथ ही आज़ादी का मतलब उम्र, समझ और परिस्थितियों के साथ बदल जाता है। जब हम छोटे होते है तो हमारे लिए आज़ादी जी भर कर चॉकलेट खाना होता है, जी भर के खेलना होता है, और जब हम बड़े होते है तो उसी आज़ादी का अर्थ बदल जाता है और हम चाहने लगते है कि हमें घुमने, खाने और अपनी पसन्द के कपड़े पहनने की आज़ादी मिलें। यें एक ऐसा बदलाव है जो सबके जीवन में आता है छोटे में कहे तो हम चाहते है कि हम अपनी जीवन अपने तरीको से लिए, अपनी शर्तो पे और अपने सपनो के साथ। स्वतंत्रता एक ऐसा शब्द है जिसे सबसे ग़लत तरीके से समझा और समझाया गया है। आज़ादी का मतलब समाज के विरोध में होना नही है और न ही खुद को अपने आसपास की दुनिया से अलग कर लेना।आज़ादी गलत करना भी नही है, और सही करना भी, आज़ादी पाप करना भी नही है और पुण्य करना भी नही है। वास्तव में आज़ादी है इसमें से एक को चुनने का अधिकार आप क्या करना चाहते है, कैसे कब ये आप का निर्णय हो यही आज़ादी है। आज़ादी है कि हम नया सोच सकें और कर सकें। पर इसी के साथ आज़ादी एक जिम्मेदारी भी है। ये मान लेना कि सिर्फ मैं आज़ाद हूँ और बाकी सबसे आपका मतलब नहीं, आज़ादी के प्रति एक गलत सोच होगी। मान लीजिये की समुंद्र की आज़ादी है कि वो अपनी सीमांओ को तोड़ कर बाहर निकल आए, या फिर ह़वा सोचे कि मैं आज़ाद हूँ और अब मैं आराम करूंगी और रूक जाउंगी तो क्या होगा? एसी स्थिति में जीवन का अंत हो जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे अधिकारों के साथ ही कर्तव्य जुड़े है। उसी तरह स्वंतत्रता के अधिकार में ही जि़म्मेदारी छुपी हुई है किस तरह दोनो में तालमेल बैठाया जाए ये आप खुद सोचे और अपने साथ-साथ दुसरो को भी आज़ाद रहने दें। आखिर में यही कहुंगी की आज़ादी का मतलब जि़म्मेदारियो से मुंह चुराना नही होता बल्कि दोनो के बीच तालमेल बनाना होता है। अब अगली बार खुद को आज़ाद कहेें तो ये भी सोचे कि आप जि़म्मेदार आज़ाद हैं या नही?


 (नीति पांडे)

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